Friday, August 15, 2014

दिल की आजादी



हे इंसान तू क्यों नहीं है आजाद अपने मन से ??

तू क्यों खुशियों के बाग का साथ छोड़कर गमों के वन में चला जाता है भटकने के लिए ??

क्यों अपने वर्तमान में भूत को याद कर अपना भविष्य खराब कर रहा है ??

शायद तुझे नहीं पता , ये जो गम है ना ये कभी अकेला नहीं आता ये लाता हे अपने साथ में 1 और गम (GUM)। जो उसे रखता हे सदा 1 ही जगह पर चिपकाकर ।

तू अपने जेहन में उन बीते हुए गमों को क्यों इकट्ठा कर रहा है ??


इन्हें भुलाने के लिए तू कितने भी आँसू क्यों ना बहाले पर ये तेरे उन आँसुओं मे नहीं बहेंगे ।



मेरी बात मान , 


निकाल फेंक इस गम रूपी वाइरस को अपनी (Heart) हार्ट डिस्क से और कर दे इस दिल को भी आजाद सदा के लिए !!!


-Vikas Soni

Tuesday, November 5, 2013

फ़ायदा तो लड़की बनने मे ही है ।

भाईदूज के दिन जब छोटी बहन ने तिलक किया ओर मेने उनका आशीर्वाद लेकर जब 10 रुपये दिए तो मेरा छोटा भाई भी ज़िद करने लगा की - "मुझे कोई पेसे नही देता ,जब देखो तब दीदी को ही पेसे मिलते रहते हें " 

ओर फिर कहने लगा की - "मुझे भी लड़की होना चाहिए था " 

हम सब को हसी आ गयी , मेरे छोटे भाई की सोच के मुताबिक फ़ायदा तो लड़की बनने मे ही हे ।

लेकिन बात तो उसकी ठीक ही थी , अब आप ही देखिये ना बात चाहे भाई दूज की हो या रक्षाबन्धन की या नवरात्रि की , फ़ायदा हमेशा लड़कियों का ही होता हे ।

रक्षाबन्धन ओर भाईदूज को इन्हें ही पेसे मिलते हें ओर नवरात्रि के दिन जब कन्या को भोजन कराया जाता हे तब भी इन्ही के जलवे होते हें । एसे कई प्रसंग हें जिनमे लड़कियों को लड़कों से ज़्यादा महत्व दिया जाता हे ।

हम लड़कों को मिलता तो कुछ भी नही हे उपर से काम ओर करना पड़ता हे , कभी मम्मी ने कहा की जाओ चायपत्ति ले आओ , तो कभी तेल ले आओ तो कभी दादाजी ने कहा की जाओ बीड़ी ले आओ , अब इन काम को करने से मना किया तो लड़कों की आफ़त । अगर बहन ने उपवास रखा तब तो उनके जलवे , ये काजू बादाम वाली खीर , ये फल , ओर लड़के तो उपवास रख ही नही सकते ।

सच मे इतनी सारी सुविधाएँ मिलने के बाद किसका मन ना करे लड़की बनने का ??

बच्चों की सोच भी बहुत हद तक सही होती हे । आज सारा दिन छोटे भाई के चेहरे को निहारता रहा ओर उसके चेहरे पर खुशी ढूँढने की कोशिश करता रहा लेकिन जब कोई खुशी का पल उसके चेहरे पर ना दिखा तो जेब से 10 रुपये निकालकर अपने छोटे भाई को दे दिए ।

फिर तो उसके चेहरे की खुशी देखने लायक थी , इतना प्रसन्न की जेसे दुनिया की सारी खुशी उन 10 रुपयों मे उसे मिल गयी हो ।

मेरे चेहरे पर भी 1 छोटी सी मुस्कान खिल उठी ।

- विकास सोनी

Saturday, November 2, 2013

लघुकथा - चंदा


मीना आंटी जो मकान मालिक हें और उपर के मकान में रहती हें , उन्होने नीचे का कमरा किराए से दे रखा हे, अभी किरायेदार की पत्नी नीलम के साथ बातें करने मे व्यस्त हें ।

दरवाजे पर दस्तक हुई । नीलम ने दरवाजा खोला ।

"
आंटी चंदा दीजिए " एक साथ आए करीब पंद्रह लड़कों मे से एक ने कहा ।

नीलम ने उन्हे 21 रुपये दिए ।

"उपर कहाँ जा रहे हो ?" मीना आंटी की चिल्लाने की आवाज़ उन लड़कों के कानों मे गूँज गई ।

"चंदा लेने" एक लड़के की तरफ से जवाब मिला ।

"अरे दोनो घर एक ही हें , उपर का चंदा भी इसीमें आ गया है । "

और फिर दरवाजा बंद हो गया ।

........

- विकास सोनी

रायपुर , छत्तीसगढ़